सदियों पुरानी कसक…इस हार के साथ ही खत्म हो गई थी नेपाल की शान, वर्ना भारत का इतना बड़ा हिस्सा होता उसके पास

नई दिल्ली : समाचार ऑनलाइन – इस बात को नहीं नकारा जा सकता है कि सुगौली संधि से ही भारत और नेपाल के बीच सीमा रेखा तय हुई। 1981 में दोनों देशों की सर्वे टीमों ने ऐतिहासिक संधियों, मानचित्रों और दस्तावेजों को ही आधार बनाकर ही अंतरराष्ट्रीय सीमा का नक्शा तैयार किया। सुगौली संधि और 1860 के समझौते के अलावा, नेपाल और भारत के बीच सीमारेखा तय करने वाला और कोई भी दस्तावेज नहीं है। सुगौली संधि पर कंपनी की तरफ से पैरिश ब्रैडशॉ और नेपाल की तरफ से राजगुरु गजराज ने हस्ताक्षर किए थे। इसी संधि में महाकाली नदी को आधार बनाकर ब्रिटिश भारत और नेपाल की सीमारेखा तय की गई थी। नेपाल का दावा है कि विवादित क्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र से गुजरने वाली जलधारा ही वास्तविक नदी है, इसलिए कालापानी नेपाल के इलाके में आता है। वहीं, भारत नदी का अलग उद्गम स्थल बताता है।
ऐसा था नेपाल : कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा पर अपना दावा पेश करने वाले नेपाल का विस्तार 1816 में सुगौली संधि के अस्तित्व में आने से पहले पश्चिम में सतलज से लेकर पूरब में तीस्ता नदी तक था। नेपाल के राजा पूर्व में सिक्किम किंगडम और पश्चिम में कुमाऊं और गढ़वाल इलाका (वर्तमान उत्तराखंड) युद्ध में जीत चुके थे। हालांकि, सुगौली संधि के तहत, नेपाल के राजा को ये सारे इलाके ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपने पड़े। 1857 के विद्रोह को दबाने में जब नेपाल के जंगबहादुर राणा ने अंग्रेजों की मदद की तो उन्हें इनाम के तौर पर नेपालगंज और कपिलवस्तु वापस मिल गए, लेकिन ब्रिटिश भारत ने गढ़वाल और कुमाऊं का कोई भी इलाका वापस नहीं किया था। नेपाल के एक एनजीओ ने 2019 में एक सिग्नेचर कैंपेन चलाकर दार्जिलिंग और वर्तमान उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र को लौटाने की मांग भी की थी। हालांकि, सुगौली संधि में ये बात भी थी कि नेपाल इन इलाकों पर कभी अपना दावा पेश नहीं कर सकता है। भारत की आजादी के बाद भी नेपाल के राणा शासक और नेपाली राजाओं ने इन इलाकों को लेकर कभी कोई दावा नहीं किया।