10 साल कमरे में बंद रहे उच्च शिक्षित भाई-बहन, मां की मौत से लगा था सदमा  

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राजकोट. ऑनलाइन टीम : गुजरात के राजकोट निवासी नवीन मेहता  सेवानिवृत्त होने के बाद अपने घर को संयमित कर ही रहे थे कि एक दिन उनकी पत्नी का निधन हो गया। यह 10 साल पहले की बात है। पूरा घर एक तरह से टूट गया। बच्चे उच्च शिक्षित थे, लेकिन घर में आमदनी में वृद्धि नहीं हो पा रही थी। सबसे बड़ा बेटा (42) बीए एलएलबी करके प्रैक्टिस करता था।

सबसे छोटे बेटे ने बीए (अर्थशास्त्र) से किया था और उनकी 39 वर्षीय बहन के पास मनोविज्ञान में एमए की डिग्री थी। सबसे छोटे बेटा क्रिकेटर था और स्थानीय टूर्नामेंट में खेलता था। बावजूद इसके नवीन मेहता  35,000 रुपये की मासिक पेंशन पर घर चला रहे थे। मां के निधन के बाद बच्चों को इतना सदम लगा कि उन्होंने खुद को कमरे में बंद कर लिया। बहुत कोशिशों के बाद भी वे बाहर नहीं निकले।’ मेहता ने कहा कि उनके कुछ रिश्तेदारों ने उनके बच्चों पर काला जादू किया है। बहरहाल,  वे ऐसे कमरे के अंदर बंद थे, जहां उन्होंने एक दशक तक सूर्य की रोशनी भी नहीं देखी।

रविवार को एक एनजओ की पहल पर जब तीनों भाई-बहनों को कमरे से बाहर निकाला गया, तो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। एनजीओ के संस्थापक जालपा पटेल ने बताया कि  उनके एनजीओ को पड़ोसियों ने फोन करके नवीन मेहता के परिवार के बारे में बताया था। सूचना पर एनजीओ के सदस्य उनके घर किसानपारा इलाके में पहुंचे। यहां उनका घर बाहर से बंद था, क्योंकि बुजुर्ग खाने का टिफिन लेने गए थे। लंबे इंतजार के बाद भी जब कोई नहीं आया तो उन लोगों ने दरवाजे का ताला तोड़ दिया और अंदर दाखिल हो गए। कमरे की और तीनों भाई-बहनों क हालत देखकर वे दंग हो गए।

कमरे में मानव मल जमा था, चारों तरफ अखबार जमा थे। बासी खाना, दाल और रोटियां बिखरी पड़ी थीं। भाइयों के बाल घुटनों तक बड़े हो चुके थे। उनकी दाढ़ी पेट तक लंबी थी। उनके शरीर पर कपड़े नहीं थे। शरीर कंकाल हो चुका था। तीनों जमीन पर लेटे हुए थे। एनजीओ के सदस्यों ने नाई को बुलवाया और उनके बाल कटवाए। दाढ़ी बनवाई। उन लोगों को नहलाया गया और साफ कपड़े पहनाए गए।

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