Maharashtra : 12 विधायकों की फ़ाइल भूत ने चुरा ली क्या? शिवसेना ने राज्यपाल पर कसा तंज
मुंबई – शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में एक बार फिर राज्यपाल पर कसा तंज गया है। इसमें कहा गया कि राज्यपाल के पास करने के लिए बहुत काम है। उन कामों को करने से उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। महाराष्ट्र में टीकों की कमी है। राज्यपाल को इस संबंध में केंद्र से बात करनी चाहिए। टाउते तूफान के कारण नुकसान हुआ था। प्रधानमंत्री ने गुजरात के तूफान पीड़ितों को एक हजार करोड़ रुपये दिए। तो महाराष्ट्र के साथ अन्याय क्यों? राज्यपाल को मेरे राज्य के लिए भी 15 करोड़ रुपये की मांग कर मराठा के लोगों का दिल जीत लेना चाहिए। यह सब करने के अलावा राज्यपाल छह महीने से एक फाइल (राज्यपाल द्वारा नियुक्त विधायक) का राजनीतिकरण कर रहे हैं। अब वह फाइल भुत चुरा लिया क्या ?
सामना में आगे कहा गया है कि क्या महाराष्ट्र का राजभवन गतिशील प्रशासन की परिभाषा के अनुकूल नहीं है? वर्तमान में बंगाल और महाराष्ट्र के राज्यपालों की काफी चर्चा होती है। बंगाल के राज्यपाल जगदीश धनकड़ बहुत तेज रहे हैं और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी कुछ मामलों में धीमे रहे हैं। यह एक सच्चाई है, आलोचना नहीं। भारतीय जनता पार्टी के महामंडलेश्वर को इस तथ्य को समझना चाहिए। महाराष्ट्र के मंत्रिमंडल ने विधान परिषद में 12 सदस्यों को मनोनीत करने की सिफारिश की। इस सिफारिश को बने छह महीने बीत चुके हैं। राज्यपाल फैसला लेने को तैयार नहीं हैं। मुंबई हाई कोर्ट ने राज्यपाल से जवाब मांगा है। विधान परिषद के 12 मनोनीत सदस्यों का सवाल अब हाईकोर्ट पहुंच गया है। महाराष्ट्र के मंत्रिमंडल द्वारा सर्वसम्मति से एक फाइल राज्यपाल को भेजी जाती है और राज्यपाल छह महीने तक उस पर निर्णय नहीं लेते हैं। इसे धीमा कहें या क्या? 12 सदस्यीय नियुक्ति फ़ाइल का क्या हुआ?
यह पता चला है कि राज्यपाल सचिवालय से 12 नामों की अनुशंसित ‘सूची’ वाली फाइल गायब हो गई है। जब अनिल गलगली ने इस संबंध में जानकारी मांगी तो वह किस तरह की जानकारी देंगे क्योंकि ऐसी कोई सूची या फाइल उपलब्ध नहीं है? यह जानकारी राज्यपाल कार्यालय ने दी। यह चौंकाने वाला है।
अंधविश्वास को मिटाने के लिए महाराष्ट्र में कानून है। हालांकि, मुख्यमंत्री द्वारा भेजी गई एक महत्वपूर्ण फाइल छह महीने से नहीं मिली है। अब वह गायब हो गई। यह लक्षण क्या है? अब मुंबई हाई कोर्ट ने राज्यपाल से पूछा है, ‘सर, उस फाइल का क्या हुआ?’ इसलिए शिवसेना ने यह भी मांग की है कि राज्यपाल को यह बताना होगा कि फाइल को किस भूत ने चुराया है।
कानून यह निर्धारित नहीं करता है कि विधायकों की नियुक्ति एक निर्दिष्ट अवधि के भीतर तय की जानी चाहिए। भाजपा नेता आशीष शेलार ने तर्क दिया कि यह कहना गलत था कि राज्यपाल ने इस पर निर्णय नहीं लिया, लेकिन उस आदेश का कोई मतलब नहीं था। उल्टे राज्यपाल के भाग्य का खुलासा हो रहा है। कानून यह नहीं बताता कि फैसला कब और कितने समय के लिए लिया जाना चाहिए। क्योंकि इसका मतलब यह नहीं है कि आपको छह महीने या एक साल के लिए नियुक्तियां नहीं करनी चाहिए। नियुक्तियों में विफलता राज्य और विधायिका का अपमान है। 12 सदस्यीय फाइल को मंजूरी देने से राज्यपाल का इनकार राजनीति से प्रेरित है और आदेश को रोक दिया गया है। विपक्ष इस व्यर्थ विश्वास पर जी रहा है कि हम महाराष्ट्र में वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंकेंगे, लेकिन यह विश्वास ‘ऑक्सीजन’ नहीं बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड है। विषैली गैस है। यह शिवसेना की ओर से बीजेपी को दी गई चेतावनी है।
12 विधायकों को समय पर नियुक्त करने में विफलता सही दिशा में एक कदम है। हाईकोर्ट ने अब सीधा फैसला सुनाया है। राज्यपाल महोदय, फाइल आलमारी में रखी जानी है या तय की जानी है? यह बहुत है अगर राज्यपाल इस अदालती मामले को गंभीरता से लेते हैं। कोई यह दिखावा न करे कि महाराष्ट्र का संयम टूट जाएगा। महाराष्ट्र प्रगतिशील, उदारवादी है, इसलिए इसे कायरतापूर्ण नहीं समझना चाहिए। बड़ों और मेहमानों का सम्मान करना महाराष्ट्र की परंपरा है।