महाराष्ट्र : बंद दरवाजे में दो नेताओं की मुलाकात में क्या हुआ ? अधिवेशन में पता चलेगा 

June 11, 2021

मुंबई, 11 जून : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और मराठा आरक्षण उपसमिति के प्रमुख रहे मंत्री अशोक चव्हाण से मुलाकात की. इस दौरान मोदी और ठाकरे के बीच ज्यादा समय तक वन-टू-वन चर्चा हुई।  दोनों ने करीब पौने घंटा बंद कमरे में बैठक की।  इस बैठक में क्या बातचीत हुई इसके तुरंत बाहर आने की संभावना नहीं है।  लेकिन फ़िलहाल इस पर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे है।  मोदी-ठाकरे की मुलाकात से  दोनों में जारी कटुता और केंद्र सरकार से राज्य को मिलने वाले दोहरा व्यवहार में कमी आने की उम्मीद है।  राज्य की बिकट आर्थिक स्थिति केंद्र की पर्याप्त मदद के बिना विकल्प नहीं है।  यह ठाकरे को अच्छी तरह से पता है।  इसलिए उन्होंने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया है।

इससे पहले शरद पवार के स्वास्थ्य की खबर लेने पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस गए थे।  इन मुलाकातों में क्या हुआ यह नहीं बताया जा रहा है।  विधानसभा का मानसून सत्र 5 जुलाई  होगा।  बंद कमरे में दोनों नेताओं की मुलाकात में सत्ता में बदलाव की चर्चा हुई होगी तो विधानसभा में अध्यक्ष पद का चुनाव टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है।  नहीं तो महाविकास आघाडी के पास 170 का शानदार बहुमत है।  तीनो दल एक साथ रहते है तो गुप्त मतदान की जरुरत नहीं पड़ेगी।  अध्यक्ष पद का चुनाव इस अधिवेशन में नहीं होता है तो कांग्रेस को तगड़ा झटका लगेगा।  विधानसभा गृह राष्ट्रवादी के हाथ में रहेगा।

भाजपा खेलेगी ओबीसी कार्ड

मराठा आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा मराठी नेताओं की फौज राजयभर में भेजकर जनसंपर्क करेगी।  कुछ समय पहले एक भाजपा नेता ने कहा था कि छत्रपति संभावजीराजे को आंदोलन करना पड़ेगा। मराठा आंदोलन के समर्थन का निर्णय पार्टी ने पहले से ही घोषित कर रखा है।  अब स्थानीय लोकल बॉडीज में ओबीसी आरक्षण सुप्रीम कोर्ट दवारा रद्द होने से महाविकास आघाडी सरकार कैसे जिम्मेदार है यह मुद्दा लेकर भाजपा नेताओं की फौज राज्य भर में जाएगी।  पंकजा मुंडे, चंद्रशेखर बावनकुले, डॉ. संजय कुटे, योगेश टिलेकर ऐसे दस बारह नेता मैदान में उतरेंगे।

चुनाव आयोग का जो स्लो “
ओबीसी को सभी लोकल बॉडीज में राजनीतिक आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रद्द हो गया है।  इसके बावजूद राज्य चुनाव आयोग ने अब तक इस संबंध में आदेश जारी नहीं किया है।  हज़ारों ओबीसी का प्रतिनिधित्व खत्म हो जाने पर असंतोष फ़ैल जाएगा।  राज्य सरकार ऐसा नहीं चाहेगी।  इस वजह से राज्य चुआव आयोग जो स्लो की रणनीति पर चल रही है।  ओबीसी इम्पीरिकल डाटा जल्द से जल्द तैयार करने और उसके आधार पर ओबीसी को फिर से आरक्षण देना संभव हुआ तो राज्य सरकार को बड़ी राहत मिलेगी।  इसके लिए कसरत करनी होगी।