साइकिल पर बोरा, बोरे में बेटी…इस खबर की ‘हेडिंग’ के लिए हमारे पास कोई ‘शब्द’ नहीं
-‘जिद’ का कारवां थक रहा है, हार नहीं मान रहा
– गंतव्य बहुत दूर, लेकिन हौंसला सभी के पास
अहमदाबाद : समाचार ऑनलाइन – लॉकडाउन की वजह से मजदूरी अब मजबूरी में बदल चुकी है। प्रवासी श्रमिक देश के अलग-अलग भागों से अपने घरों की ओर पलायन कर रहे हैं। वाहन नहीं मिलने के कारण पैदल ही घर की ओर निकल पड़े हैं। ‘जिद’ का कारवां थक रहा है, लेकिन हार नहीं मान रहा। ऐसा ही एक प्रवासी मजदूर अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ दिल्ली से उत्तर प्रदेश के लिए जा रहा है। इसके साथ इसके बच्चे भी है। एक बेटी है इस मजदूर की जो दिव्यांग है। उसे इस मजदूर ने साइकिल पर एक देसी जुगाड़ के सहारे लटका रखा है। न जाने कितनी दूर इस तरह से उस बच्ची को ऐसे ही लटके हुए जाना है।
इस बच्ची को नहीं पता कि दुनिया किस झंझट से जूझ रही है, पर वह परिवार के साथ लंबे रास्ते पर निकल चुकी है। एक बच्ची अपने पिता की साइकिल पर धक्का लगा रही है। शायद पिता की मदद करना चाहती हो या खेल रही हो। 35 वर्षीय प्रदीप भी दिव्यांग हैं। अहमदाबाद में कहीं काम करते थे। कई घंटों हाइवे पर इंतजार करने के बाद किसी ट्रक वाले ने इन्हें लिफ्ट दी ताकि ये अपने घर राजस्थान जा सकें। इन मजदूरों, दिव्यांगों और गरीबों का कोरोना ने सब कुछ छीन लिया होगा, लेकिन अब भी जूझने का हौसला और मदद करने की इच्छा बाकी है।