सरसंघचालक ऐसा कभी नहीं कहेंगे; शिवसेना का भाजपा पर फिर निशाना

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मुंबई, 27 अक्टूबर – मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना के दशहरा मेलावा पर टिप्पणी करने वाले भाजपा नेताओं पर शिवसेना ने सामना के जरिये हमला बोला है। सामना में लिखा गया है कि सरसंघचालक और शिवसेना पार्टी प्रमुख का भाषण हिंदुत्व व राष्ट्रीय एकता को दिशा देने वाला था। हिंदुत्व केवल थाली, घंटा बजाने से नहीं होता है या दाढ़ी-मूछ से सीमित नहीं होता है। राज्य में मंदिर खोलने को लेकर बार-बार भाजपा दवारा निशाना साधा जा रहा है । कोरोना महामारी की परवाह न करते हुए मंदिर खोलने की बात कभी भी सरसंघचालक मोहन भागवत नहीं कर सकते है।

दशहरा मेलावा में उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा था। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, कंगना रनौत पर भी उद्धव ठाकरे ने जमकर निशाना साधा था। इसके बाद भाजपा नेताओं ने उद्धव ठाकरे पर हमला करते हुए कहा था कि शिवसेना ने हिंदुत्व को किनारे रख दिया है। सावरकर को लेकर कुछ भी नहीं कहा।

सामना के लेख की महत्वपूर्ण बातें
सरसंघचालक मोहन भागवत ने दशहरा मेलावा में हिंदुत्व की व्याख्या स्पष्ट करके बताई है। संघ का दृष्टिकोण हिंदुत्व का अर्थ व्यापक है। उसे पूजा पद्त्ति से जोड़कर संकुचित करने का प्रयास किया गया है। भागवत ने बताया कि हिंदुत्व देश का सार है। जो भाजपा के साथ नहीं वह हिन्दू नहीं ऐसी विकृत विचार तक पहुंचने वाले ठेकेदार का दांत नागपुर में सरसंघचालक ने तोड़ दिया है।
भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व गोमाता के नाम पर घूम रही है और इसकी वजह से देश में बहुत खून खराबा हुआ है। वीर सावरकर का गाय को लेकर अलग विचार था। गाय को वह हिंदुत्व का प्रतिक मानने को तैयार नहीं थे। गाय एक उपयुक्त पशु या प्राणी है। लेकिन भाजपा ने गाय को लेकर हिन्दू-मुसलमानों में दंगा करवाया और राजनीति की। माय मरो और गाय जगो ये हमारा हिंदुत्व नहीं है।

भारतीय जनता पार्टी के लोग मंदिर के लिए थाली बजा रहे है और छाती पिट रहे है। भागवत ने कहा है कि हमारे लिए हिंदुत्व प्रथा परंपरा आधारित मूल्य पद्त्ति है। इस व्याख्या में 130 करोड़ लोग आते है। हम हिंदुत्व को व्यापक अर्थों में देखते है। उत्तर प्रदेश में बिना परमिशन के दाढ़ी रखने पर एक पुलिसकर्मी को सरकार ने सस्पेंड कर दिया। इसका तथाकथित हिंदुत्ववादियों ने स्वागत किया है। लेकिन राजनीतिमें , केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई लोगों ने अभिमान के साथ दाढ़ी रखा है। हिंदुत्व थाली, घंटा बजाने से पूरा नहीं होता है और दाढ़ी-मूछ से सीमित नहीं होता है। चापेकर भाइयों की दाढ़ी नहीं थी। लेकिन उसके बाद भी दोनों भाई हंसते-हंसते देश के लिए फांसी पर चढ़ गए।

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