पहली किताब… ‘जिंदगी की दास्तान’ में किन्नरों की पूरी पहचान
रायपुर. ऑनलाइन टीम : तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है, मगर इनकी पहचान कुछ ऐसी है, जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता। हालांकि इनकी जिंदगी के पन्नों को पलटना आसान नहीं।
रायपुर के डाक्टर फिरोज अहमद ने एक मुकम्मिल कोशिश की है। उन्होंने किन्नरों के भाव को शब्दों में पिरोया है। उनका दावा है कि ‘जिंदगी की दास्तान’ थर्ड जेंडर समुदाय सदस्यों की गद्य और पद्य रचनाओं का यह पहला संकलन है। इसकी रचना छत्तीसगढ़ सहित भारत के तृतीय लिंग समुदाय के द्वारा की गई है।
किताब की मानें तो तीसरे जेंडर का होने पर जिन्हें उनके अपने ख़ुद से दूर कर देते हैं, उन्हें किन्नर समाज पनाह देता है। इनके समाज के कुछ क़ायदे क़ानून होते हैं जिन पर अमल करना लाज़मी है। ये सभी परिवार की तरह एक गुरु की पनाह में रहते हैं। गुरु ही इन किन्नरों का मां-बाप और सरपरस्त होता है। हर गुरु के अपने अलग क़ायदे-क़ानून होते हैं। इन्हें तोड़ने वालों को बख़्शा नहीं जाता। जो ऐसा नहीं कर पाते, उनसे ख़िदमत के दूसरे काम लिए जाते हैं। अपने ग्रुप से निकाल दिए जाने के बाद ये सड़कों पर, पार्कों, बसों, ट्रेनों, चौराहों, कहीं भी मांगते हुए नज़र आ जाते हैं।
किताब के अनुसार, थर्ड भाव शून्य नहीं है। विचार शून्य नहीं। नकारा नहीं। उनमें अदम्य साहस है। बचपन से लेकर आज तक कटीले रास्तों पर चलते हैं। उफ भी नहीं करते। हम बहुत कुछ कहना और करना भी चाहते हैं, किंतु जब देखते हैं कि वैचारिक यात्रा के लिए गली से लेकर सड़क तक सब बंद है तो मन मसोस कर रह जाते हैं। दावा किया जा रहा है कि यह किताब भारत में किन्नरों द्वारा पहली बार लिखी गई है। याद रहे, भारत में साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें सरकारी दस्तावेज़ों में बाक़ायदा थर्ड जेंडर के तौर पर एक पहचान दी है। वो सरकारी नौकरियों में जगह पा सकते हैं। स्कूल कॉलेज में जाकर पढ़ाई कर सकते हैं। उन्हें वही अधिकार दिए हैं जो किसी भी भारतीय नागरिक के हैं।