फिर अमन का समझौता….मान गया पाक, नहीं करेगा खुराफात  

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नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : भारत और पाकिस्तान, सीमा पर शांति बहाल करने के लिए 2003 में हुए संघर्ष विराम समझौते का पूरी तरह पालन करने पर राजी हुए हैं। गुरुवार को ज्वाइंट स्टेटमेंट के माध्यम से दोनों देशों के बीच के हुक्मरानों की कोशिशें सामने आईं। इस सहमति के बाद संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों ही पक्ष नियंत्रण रेखा और दूसरे सेक्टरों में सभी समझौतों, परस्पर समझ और संघर्ष विराम का सख्ती से पालन करेंगे।

दोनों सेनाओं के सैन्य अभियानों के महानिदेशक यानी डीजीएमओ के बीच एलओसी पर लगातार जारी गोलाबारी की बड़ी घटनाओं के बाद यह बातचीत बुधवार को हुई और बृहस्पतिवार से यह संघर्ष विराम जमीनी हकीकत भी बन गया। यह सहमति केवल एलओसी पर ही नहीं, बल्कि अन्य सेक्टरों पर भी लागू होगी। इसके अंतर्गत चौबीस व पच्चीस फरवरी की मध्यरात्रि से ही गोलाबारी रोकने का फैसला हुआ। यह सुखद ही है कि भारत व पाकिस्तान के बीच सीमा पर सख्ती से संघर्ष विराम लागू करने पर न केवल सहमति ही बनी बल्कि लागू भी हो गई।

साथ ही यह भी कि पिछले समझौतों को भी गंभीरता से लेकर पालन किया जायेगा। इससे पहले हॉटलाइन के जरिये दोनों डीजीएमओ ने नियंत्रण रेखा की स्थितियों की समीक्षा की और एक-दूसरे के आंतरिक मुद्दों और चिंताओं को समझते हुए सहमत हुए कि कैसे शांति भंग करने वाले कारकों को टाला जा सकता है, जिससे क्षेत्र में शांति स्थापित करने में मदद मिल सके। वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना ने साफ किया है कि वह जम्मू-कश्मीर के आंतरिक हिस्से में आतंकवादियों से निपटने के लिए तथा सीमा पर घुसपैठ के खिलाफ सख्त कदम उठाती रहेगी।

वर्ष 2003 में भारत और पाक के बीच सीजफायर समझौता हुआ था, जिसमें सीमा पर एक-दूसरे की सेनाओं पर गोलाबारी न करने का संकल्प दोहराया गया था, लेकिन तीन साल तक स्थिति सामान्य रहने के बाद वर्ष 2006 में पाक ने फिर एलओसी पर गोलाबारी शुरू कर दी। बीते साल तो संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं में रिकॉर्ड तेजी आई। बहरहाल, अभी कहना जल्दबाजी होगी कि पाक का यह हृदय परिवर्तन परिस्थितियों के अनुरूप है या भविष्य की रणनीति बनाने के लिए वह कुछ समय ले रहा है। या फिर किसी अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते यह कदम उठा रहा है। बहरहाल, हाल में पूर्वी लद्दाख से चीनी सेना की वापसी के बाद पाक का एलओसी पर संघर्ष विराम के लिए सहमत होना भारतीय नजरिये से सुखद ही है।

सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने न सिर्फ पाकिस्तानी सेना, बल्कि वहां की हुकूमत से भी महीनों  बातचीत की। प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सलाहकार मोइड यूसुफ से किसी तीसरे देश में मुलाकात की। वे जानते थे कि यूसुफ इमरान के बेहद करीबी हैं। हालांकि गुरुवार को जब ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी हुआ , तो  एक ट्वीट में मोइद यूसुफ ने कहा कि ‘ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई है’ और ऐसे दावे ‘आधारहीन’ है।

बता दें कि अजीत डोभाल ने चीन के साथ सीमा पर जारी तनाव को कम करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। पिछले साल गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद, डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ करीब दो घंटे तक वीडियो कॉल पर बात की थी। इसी बातचीत के बाद, दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर टोटल डिसइंगेजमेंट पर सहमति बनी।

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