चड्ढा, नड्डा, फड्डा, भड्डा बंगाल में होते हैं…ममता की ललकार पर शाह का पलटवार, बोले-फिर आ रहा हूं   

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कोलकाता. ऑनलाइन टीम : कोरोनाकाल के बीच केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच तनातनी बढ़ती ही जा रही है। एक दूसरे पर जुबानी जंग तेज है। ममता ने कहा, ‘उनके (बीजेपी) पास कोई और काम नहीं है। अक्सर गृह मंत्री यहां होते हैं, बाकी समय उनके चड्ढा, नड्डा, फड्डा, भड्डा यहां होते हैं। जब उनके पास कोई दर्शक नहीं होता है, तो वे अपने कार्यकर्ताओं को नौटंकी करने के लिए कहते हैं।’ ममता की भाषा शैली पर जेपी नड्डा ने कहा, ‘उन्होंने मेरे बारे में बहुत सारी संज्ञाएं, विचार और शब्दावली दी है। ममता जी ये आपके संस्कारों के बारे में बताता है और ये बंगाली संस्कृति नहीं है।।।ममता जी बंगाल को कितना नीचे ले गई हैं।’
अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 19 और 20 दिसंबर को भी पश्चिम बंगाल दौरे पर जा रहे हैं। ममता बनर्जी ने कहा था कि जब देखो देश का गृमंत्री यहां होता है, इसके क्या मायने हैं। इसे बड़ा राजनीतिक चुनौती मानते हुए अमित शाह ने इस दौरे का मन बनाया है, ताकि ममता बनर्जी को उनकी जुबान में ही वहां जवाब दिया जा सके।

दरअसल, अप्रैल-मई में होने वाले चार राज्यों असम, केरल, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल तथा केंद्र शासित प्रदेश पुद्दुचेरी के चुनाव कई मायनों में देश की राजनीति को प्रभावित करने वाला होंगे। राष्ट्रीय पटल पर विपक्ष की कद्दावर नेताओं में से एक ममता बनर्जी जहां एक ओर अपनी साख की लड़ाई लड़ेंगी, वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में 42 में से 18 सीटें हासिल करने वाली भाजपा इसे नाक की लड़ाई बना चुकी है। 10 साल पहले तक जो भाजपा पश्चिम बंगाल में अप्रासंगिक मानी जाती थी, वह आज प्रमुख विपक्षी की भूमिका में मजबूती से खड़ी है। वह अब बंगाल पर ममता बनर्जी से पहले 34 सालों तक राज करने वाले वामदलों और उसकी सहयोगी कांग्रेस को अप्रासंगिकता की ओर ढकेलती हुई दिखाई दे रही है। यही कारण है कि ममता बनर्जी आग-बबूला हैं।

डायमंड हार्बर इलाके में हुई इस घटना पर ममता ने उंगली उठाते हुए कहा, ‘आपके साथ सुरक्षाकर्मी हैं। कोई आप पर हमला कैसे कर सकता है? हमले की योजना बनाई गई होगी, मैंने पुलिस से जांच करने के लिए कहा है। लेकिन मैं हर समय झूठ बर्दाश्त नहीं करूंगी। वे (भाजपा कार्यकर्ता) हर दिन हथियारों के साथ (रैलियों के लिए) आते हैं। वे खुद को थप्पड़ मार रहे हैं और इसका आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगा रहे हैं। जरा स्थिति के बारे में सोचिए। वे बीएसएफ, सीआरपीएफ, सेना और सीआईएसएफ के साथ घूम रहे हैं।।।तो फिर आप इतने भयभीत क्यों हो।’

यह तो तत्कालीन घटना है। मगर देखा जाए तो चुनावी हिंसा के लिए पहचानी जानेवाली बंगाल की राजनीति कैडर बेस रही है। शायद इसीलिए वामदलों का गढ़ कहे जाने वाले बंगाल को सत्तापरिवर्तन में 34 साल लग गए। वर्तमान में 10 साल से सत्तासीन पार्टी तृणमूल कांग्रेस के पास भी समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी नहीं। ममता बनर्जी की छवि लड़ाकू नेता की रही है। नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने के बाद ममता बनर्जी ही ऐसी नेता और मुख्यमंत्री रही हैं जो केंद्र, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लेती रही हैं, चाहे वह मामला पश्चिम बंगाल के पुलिस कमिश्नर की गिरफ्तारी का रहा हो, सीएए-एनआरसी के विरोध का या केंद्र के राज्य के मामलों में हस्तक्षेप का।

भाजपा यहां खराब कानून-व्यवस्था और राज्य सरकार के मनमाने रवैये को आधार बनाकर लगातार राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग उठाती रही है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ममता के विकल्प के तौर पर उसके पास मुख्यमंत्री के लिए कोई चेहरा नहीं है। इस विकल्पहीनता में उसे एक बार फिर नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ चुनावी मैदान में उतरना है। इसे ममता बनर्जी भी जानती हैं, इसलिए हमला बोल राजनीति का सहारा ले रही हैं। देखना है आगे की लड़ाई किस मुकाम तक पहुंचती है।

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