किसान आंदोलन के समर्थन में मोशी में चक्का जाम

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पिंपरी। किसान हित विरोधी कानूनों के विरोध में दिल्ली में शुरू किसान आंदोलन के समर्थन में शनिवार को विभिन्न सियासी दलों और संगठनों ने देशभर में चक्का जाम आंदोलन किया। इस कड़ी में पिंपरी चिंचवड़ के मोशी में पुणे- नासिक हाइवे पर विभिन्न राजनीतिक दलों और कामगार संघटना संयुक्त कृति समिति, पुणे और जन आंदोलन संघर्ष समिति की ओर से आज दोपहर चक्का जाम आंदोलन किया गया। इस आंदोलन से पुणे-नासिक हाइवे और देहू- आलंदी बीआरटी रोड पर दूर तक वाहनों की लंबी कतार लगी रही।
इस आंदोलन में राष्ट्रवादी कांग्रेस के पूर्व विधायक विलास लांडे, वरिष्ठ मजदूर नेता प्रा. अजित अभ्यंकर, राष्ट्रवादी कॉंग्रेस के शहराध्यक्ष संजोग वाघेरे, वरिष्ठ नगरसेवक योगेश बहल, वरिष्ठ नेता मानव कांबले, नगरसेवक अजित गव्हाणे, राष्ट्रवादी की महिला शहराध्यक्षा व नगरसेविका वैशाली कालभोर, पूर्व नगरसेवक मारुती भापकर, अरुण बो-हाडे, धनंजय आल्हाट, अतुल शितोले, संजय वाबले, कालूराम पवार, शमीम पठाण, मंदा आल्हाट, शंकुतला भाट, राष्ट्रवादी शहर युवक अध्यक्ष विशाल वाकडकर, विशाल कालभोर, मजदूर नेता मनोहर गडेकर, दिलीप पवार, वसंत पवार, अनिल रोहम, इरफान सैय्यद, किशोर ढोकले, विजय लोखंडे, आजीनाथ शितोले, मयूर जयस्वाल, मकरध्वज यादव, गौरव चौधरी, विवेक भाट, गणेश दराडे, नीरज कडू, संदिप जाधव, फजल शेख, निखील दलवी, निलेश जाधव, सचिन आवटे, संतोष वाघेरे, भारती घाग, गंगाताई धेंडे, उत्तम आल्हाट, निलेश जाधव, विशाल जाधव, सुनिल आडागले, मोहन आडसूल, सचिन देसाई, सुधीर गुरुडकर, असलम बागवान, धनाजी येलकर पाटील, सतिश काले समेत हजारों किसान और मजदूर शामिल हुए।
कृति समिति के अध्यक्ष डॉ कैलाश कदम ने कहा कि, जब किसी भी राष्ट्रव्यापी ट्रेड यूनियन या किसान यूनियन की कोई मांग नहीं थी, तो केंद्र सरकार ने प्रचलित कानूनों को निरस्त कर दिया और श्रम और किसान कानून में अन्यायपूर्ण बदलाव किए। किसान पिछले 75 दिनों से दिल्ली सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें अब तक 200 किसानों की मौत हुई है।  हालाँकि, सरकार इस आंदोलन को तानाशाही तरीके से कुचलने की कोशिश कर रही है। इस तरह की तानाशाही सरकार का इस ‘राष्ट्रीय चक्का जाम’ आंदोलन के माध्यम से कड़ा विरोध किया जा रहा है। पूर्व विधायक विलास लांडे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने लाभ के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचना शुरू कर दिया है। इससे बीएसएनएल की तरह, अन्य लाभकारी सार्वजनिक कंपनियां पूंजीपतियों के हाथों में पड़ जाएंगी।  परिणामस्वरूप, लाखों श्रमिक अपनी नौकरी खो देंगे और उनके परिवार नष्ट हो जाएंगे। लोगों को सरकार से इस बारे में पूछना चाहिए। पूर्व विधायक ने यह डर जताया कि अगर भाजपा सरकार दोबारा सत्ता में आई तो वह देश को बेच देंगे।
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