बसपा विधायकों की बगावत से सोशल इंजीनियरिंग की ‘माया’ को जोर का झटका

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लखनऊ. ऑनलाइन टीम – मायावती के बढ़ते कद से आशान्वित दलित और बसपा से जुड़े लोग उत्तर प्रदेश से उठ रही नई बयार को विकास के नए आयामों से जोड़कर देख रहे थे। उत्तर प्रदेश, जिसके बारे में कभी कहा जाता था कि यहां का मुख्यमंत्री देश का अगला प्रधानमंत्री होता है, इस प्रदेश ने वास्तव में दिल्ली को हिलाकर रख दिया था। पर अब तो खुद बसपा प्रमुख मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की नींव हिलने लगी है। जैसे ही उन्होंने अपने सात विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया, प्रदेश में उनकी पार्टी का समीकरण ध्वस्त होता नजर आ रहा है।

मायावती ने गुरुवार को बागी रुख अपना वाले जिन विधायकों को निलंबित किया है, उसमें असलम राइनी (भिनगा-श्रावस्ती), असलम अली (धौलाना-हापुड़), मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-इलाहाबाद), हाकिम लाल बिंद (हांडिया- प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), सुषमा पटेल(मुंगरा बादशाहपुर) और वंदना सिंह (सगड़ी-आजमगढ़) शामिल हैं। मायावती का विश्वास खोने वाले इन सात विधायकों में तीन मुस्लिम, दो पिछड़ा वर्ग, एक दलित और राजपूत विधायक शामिल हैं। बसपा के बहुजन के फॉर्मूले में दलित, पिछड़े और मुस्लिम ही आते हैं। ऐसे में तीनों ही

वर्ग के विधायकों के बागी रुख अपनाने और सपा के साथ उनकी बढ़ती नजदीकियों से बसपा को गहरा झटका माना जा रहा है। हालांकि तात्कालिक तौर पर तो नहीं, लेकिन 2022 में होने वाले चुनाव के मद्देनजर इसे बड़े सियासी घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है।बता दें कि बसपा ने 2017 विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीती थीं, लेकिन एक के बाद एक विधायकों के बागी तेवर अपनाने से पार्टी का आंकड़ा इकाई के अंक में सिमट गया है।

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