बिहार में क्या दागदार ही चलाएंगे सरकार, पहले चरण के 319 उम्मीदवारों पर दर्ज हैं आपराधिक मामले

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पटना. ऑनलाइन टीम – धन और बाहुबल के दम पर सरकार बनाने और बिगाड़ने में बाहुबलियों का खासा योगदान रहा है। शायद यही वजह है कि राज्य की किसी भी पार्टी को इनसे परहेज नहीं रहा। चुनाव के पूर्व पार्टियां भले ही आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट न देने का राग अलापती रहीं हों किंतु ऐन मौके पर अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रत्याशी बनाने से कोई गुरेज नहीं किया। बिहार में ऐसा ही दिख रहा है। यहां हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 319 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। पहले चरण की 71 सीटों पर 1066 प्रत्याशी हैं।

गुरुआ विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक 10 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। दिनारा विस क्षेत्र में नौ प्रत्याशियों पर, जबकि बांका में आठ, शेखपुरा में आठ, तरारी, चैनपुर, अरवल, ब्रह्मपुर, डुमरांव, आरा व रजौली में सात-सात, कहलगांव में तीन, सुल्तानगंज में एक, अमरपुर में पांच, धोरैया में दो, कटोरिया में एक, बेलहर में दो मामले दर्ज हैं। इसी प्रकार तारापुर में पांच, मुंगेर, लखीसराय व जमालपुर में छह-छह, सूर्यगढ़ा में पांच, बरबीघा, मोकामा व बाढ़ में चार-चार, मसौढ़ी व पालीगंज में तीन-तीन, बिक्रम में दो, संदेश में पांच, बड़हरा, अगिआंव व कुटुम्बा में छह-छह, तरारी, जगदीशपुर व बक्सर में पांच-पांच मामले दर्ज हैं।

वहीं, राजपुर, रामगढ़, काराकाट, कुर्था, घोसी, नवीनगर, शेरघाटी, गया टाउन में चार-चार, मोहनिया में एक, भभुआ, सासाराम, कुटुम्बा, अतरी व वजीरगंज में छह-छह, मोहनिया में एक, जहनाबाद में दो, मखदुमपुर, औरंगाबाद, रफीगंज, इमामगंज, बेलागंज, हिसुआ, गोविंदपुर, वारसलिगंज व गोह में तीन-तीन मामले दर्ज हैं। इतिहास को याद करें तो, 80 के दशक में बिहार की राजनीति में वीरेंद्र सिंह महोबिया व काली पांडेय जैसे बाहुबलियों का प्रवेश हुआ जो 90 के दशक के अंत तक चरम पर पहुंच गया।

इनमें प्रभुनाथ सिंह, सूरजभान सिंह, पप्पू यादव, मोहम्मद शहाबुद्दीन, रामा सिंह व आनंद मोहन तो लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे जबकि अनंत सिंह, सुरेंद्र यादव, राजन तिवारी, अमरेंद्र पांडेय, सुनील पांडेय, धूमल सिंह, रणवीर यादव, मुन्ना शुक्ला आदि विधायक व विधान पार्षद बन गए। यह वह दौर था जब बिहार में चुनाव रक्तरंजित हुआ करता था। इस दौर में यह कहना मुश्किल था कि पता नहीं कौन अपराधी कब माननीय बन जाए। अब ऐसे ही कई चेहरे फइर से माननीय बनने को आतुर दिख रहे हैं। अब फैसला जनता के हाथ है।

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