चाणक्य नीति : पिछले जन्म के पुण्य से ही मनुष्य को मिलता है 6 चीजों का सुख

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नई दिल्ली : समाचार ऑनलाइन  – चाणक्य का भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। ये अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र के ज्ञाता होने के साथ ही एक महान दार्शनिक भी थे। इन्होंने अपनी नीतियों के माध्यम से नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बना दिया। आज के दुनिया में हर किसी की अपनी-अपनी चाहत होती है। कोई रुपया-पैसा चाहता है, कोई सम्मान तो कोई मुक्ति की कामना रखता है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में कहा कि पूर्व जन्म के कर्म और उसके फल को लेकर ही मनुष्य को मिलता है सुख और दुःख।

श्लोक –
भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर्वराङ्गना ।

विभवो दानशक्तिश्च नाल्पस्य तपसः फलम् ॥

मतलब –
चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय में वर्णित इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को 5 चीजें पिछले जन्म पुण्यों के आधार पर मिलती हैं। इसमें सबसे पहला स्थान है अच्छे भोजन का। चाणक्य के मुताबिक वो लोग किस्मत वाले होते हैं जिन्हें अच्छा खाना मिल पाता है। यानी आपका दिल जिस चीज को खाने का करे और वो चीज मिल जाए तो उससे बड़ा सुख क्या होगा। उत्तम खाना मिल जाना ही सुख नहीं है, चाणक्य निति के मुताबिक, अच्छे भोजन को पचा पाने की शक्ति का होना भी आवश्यक है जिसकी क्षमता सभी में नहीं होती। यह शक्ति उन्हीं लोगों को पास होती है जिन्होंने पूर्व के जन्मों में अच्छे कर्म किए होते हैं।

इस श्लोक में चाणक्य सुंदर और गुणवान स्त्री का भी जिक्र करते हैं। वो कहते हैं कि किस्मत वालों को ही सर्व गुण सम्पन्न और समझदार पत्नी मिलती है। वर्तमान संदर्भ में गुणवान पत्नी का मिलना पुण्य के फल से कम नहीं है। अपने जीवनसाथी का आदर करने वाले व्यक्ति को ही ऐसी कन्या प्राप्त होती है। चाणक्य कहते हैं कि अच्छे काम शक्ति वाले मनुष्य में भाग्यशाली होते हैं। आचार्य कहते हैं कि व्यक्ति काम के वश में नहीं होना चाहिए। काम के वश में रहने वाले व्यक्ति का विनाश जल्द हो जाता है।

धन के सही इस्तेमाल की जानकारी का होना भी खुशहाल जीवन के अत्यंत आवश्यक माना गया है। चाणक्य कहते हैं कि धनवान होने से ज्यादा जरूरी धन के इस्तेमाल की जानकारी होना है। यह गुण भी कर्मों के पुण्यों से ही प्राप्त होता है। दान देने वाला स्वभाव भी बेहद कम लोगों में होता है और यह भी किसी पुण्य के फल से कम नहीं है। क्योंकि धरती पर धनवान लोगों की कमी नहीं है फिर भी भंडार भरा होने के बाद भी व्यक्ति दान के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ा पाता। वहीं, गरीब व्यक्ति भी अपने गुजारे के धन में से जरूरतमंद को मदद कर देता है। चाणक्य के मुताबिक ये गुण भी पूर्वजन्म के कर्मों से मिलता है।

बता दें कि विष्णुगुप्त चाणक्य बचपन से ही अन्य बालकों से अलग थे। बाल अवस्था में उन्होंने वेद, पुराण का अध्ययन कर लिया था। पिता शिक्षक थे तो चाणक्य भी शिक्षक बनना चाहते थे। चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। उनके जबरदस्त ज्ञान के कारण ही उन्हें कौटिल्य का नाम मिला।

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