मप्र : राज्यपालों के इलाज पर 15 साल में खर्च हुए सवा करोड़ रुपये

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भोपाल : पोलीसनामा ऑनलाइन – केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्रियों से लेकर राष्ट्रपति और राज्यपालों को सरकारी स्तर पर चिकित्सा की बेहतर से बेहतर सुविधा मुहैया कराई जाती है। मध्य प्रदेश में बीते 15 सालों में राज्यपालों के उपचार पर लगभग सवा करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। यह खुलासा आरटीआई के जरिए मिली जानकारी से हुआ है।

राज्य में वर्ष 2003 से 2018 की अवधि में छह राज्यपाल रहे हैं। इनमें से सिर्फ दो बलराम जाखड़ और रामनरेश यादव ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाए। इसके अलावा रामप्रकाश गुप्ता एक साल, रामनरेश ठाकुर लगभग सवा दो साल राज्यपाल रहे। वहीं वर्तमान राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के कार्यकाल का अभी लगभग डेढ़ साल हुआ है।

सामाजिक कार्यकर्ता सतना निवासी राजीव खरे को राजभवन के लोक सूचना अधिकारी शैलेंद्र बरसैयां गुप्ता की तरफ से उपलब्ध कराए गए ब्योरे के मुताबिक, “वर्ष 2003 से 2018 तक राज्यपालों के इलाज पर कुल 1,22,32,183 रुपये खर्च किए गए।”

खरे को यह जानकारी आसानी से नहीं मिली, बल्कि उन्हें लगभग डेढ़ साल जद्दोजहद करनी पड़ी। सामाजिक कार्यकर्ता खरे इस बात को जानना चाहते थे कि राज्यपाल को चिकित्सा सुविधा सरकारी स्तर पर मिलती है और बुजुर्ग नेता राज्यपाल बनते हैं तो उनके उपचार पर कितना खर्च होता है। इसके लिए उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया। लेकिन राजभवन ने कहा कि मांगी गई जानकारी लोकहित और लोक गतिविधियोंकी नहीं है और इसलिए खरे को ब्योरा देने से इंकार कर दिया।

खरे के अनुसार, राजभवन से ब्योरा न मिलने पर उन्होंने अपील की, जिसे भी राजभवन के अपील अधिकारी शैलेंद्र कियावत ने लोकहित का न होने का करार देते हुए खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यालय में अपील की। इस पर मुख्य सूचना आयुक्त के. डी. खान ने राजभवन के लोक सूचना अधिकारी राजेश बरसैया गुप्ता को जानकारी देने को कहा।

मुख्य सूचना आयोग के आदेश में कहा गया है, “अपीलकर्ता ने राज्यपाल की बीमारी और देयकों की जानकारी नहीं मांगी है, बल्कि उनके उपचार पर वर्ष वार खर्च हुई राशि का ब्योरा मांगा है। लिहाजा यह ब्योरा उन्हें दिया जाए।” आरटीआई कार्यकर्ता खरे ने कहा, “राजनीतिक दल अपने बुजुर्ग नेताओं को चिकित्सा सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठा देते हैं। एक तरफ दल 75 साल के बाद अपने नेताओं को चुनाव लड़ने के योग्य नहीं पाते, दूसरी ओर उन्हें राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंप देते हैं।”

खरे से जब राज्यपालों के इलाज पर हुए खर्च की जानकारी मांगने के बारे में पूछा गया तो, उन्होंने कहा, “मेरे दिमाग में एक बात बार-बार आती थी कि आखिर बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल क्यों बनाया जाता है। कहीं बेहतर चिकित्सा सुविधा देने की मंशा तो नहीं होती। अब यह बात साफ हो गई है कि वास्तव में राजनीतिक दलों का मकसद बुजुर्ग नेताओं का जीवन सुखमय बनाना होता है।” खरे के अनुसार, “जब संविधान में 35 साल से ज्यादा आयु के व्यक्ति को राज्यपाल बनाने का प्रावधान है तो राजनीतिक दल इसके मुताबिक राज्यपाल क्यों नहीं बनाते। युवाओं को मंत्री तो बना दिया जाता है, मगर राज्यपाल नहीं।”

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