गांवों को अलग कर अलग नगरपालिका या महानगरपालिका बनाने की मांग राजनीतिक !

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पुणे : पुलिसनामा ऑनलाइन – Pune PMC – Uruli Devachi – Fursungi | पांच वर्ष पूर्व महानगरपालिका में शामिल किए गए उरुली देवाची और फुरसुंगी गांव को अलग किए जाने का निर्णय होने के बाद और कई गांवों को अलग करने की मांग जोर पकड़ने लगी है. इतना ही नहीं हडपसर वाघोली के लिए अलग से महानगरपालिका बनाने की मांग भी जोर पकड़ने लगी है. मूल रुप से जिन नेताओं ने इन गांवों को महानगरपालिका में शामिल किया था वही अब इन गांवों को अलग करने की मांग करने से असमंजस की स्थिति बन गई है. शामिल किए गए गांवों में सुविधाओं को गति देने में मिली नाकामी पर पर्दा डालकर केवल राजनीतिक फायदे के लिए होने वाले इन निर्णयों से शहर के विकास पर दीर्घकालीन परिणाम होने की आशंका है. (Pune PMC – Uruli Devachi – Fursungi)

 

पिछले 60 से अधिक वर्षों में पुणे मनपा की सीमा व्यापक होती गई है. औद्योगिक और शैक्षणिक नगरी होने की वजह से पुणे शहर मनपा की सीमा के बाहर भी शहरी बस्ती का विस्तार और उसके बाद इन शहारी बस्तियों को मनपा में शामिल करना निरंतर होने वाली प्रक्रिया है. 1997 में मनपा में 37 गांवों को शामिल किया गया था. उस वक्त जो गांव पूर्णता या आंशिक रुप से अलग किए गए उन 34 गांवों को पिछले पांच वर्षों में मनपा में शामिल किया गया है. लेकिन बीच के 20 वर्षों की अवधि में अलग किए गए गांवों में फंड के अभाव में कई समस्या पैदा हो गई.

इन गांवों की आबादी बढ़ती गई जिसकी वजह से अनगिनत निर्माण कार्य कराए गए. इस वजह से संकरी सड़के, खंडित पानी सप्लाई, कचरा प्रबंधन की दुर्दशा, ड्रेनेज लाइन्स और मानसून गटर के अभाव में ये गांव सुनसान हो गई. इतना हीं नहीं पीएमआरडीए की स्थापना के बाद भी इन गांवों में मनपा की पानी सप्लाई का सिस्टम जब तक खड़ी नहीं होती है तब तक डेवलपर्स को वाटर सप्लाई करने का एफिडेविट देना अनिवार्य किया गया है. इस वजह से इन गांवों की समस्या निश्चित रुप से ध्यान देने योग्य है.

 

ऐसी स्थिति में केवल मनपा में शामिल किए जाने के बाद प्रॉपर्टी टैक्स बड़े पैमाने पर बढ़ाने का हवाला देकर मुख्यमंत्री और नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने उरुली देवाची और फुरसुंगी इन दो गांवों को अलग करने का निर्णय लिया है. इसके साथ ही साथ हडपसर के विधायक चेतन तुपे ने विधानसभा में हडपसर और उससे सटे परिसर के लिए अलग से मनपा बनाने की मांग की है. जबकि पालकमंत्री चंद्रकांत पाटिल ने हाल ही में वाघोली के एक नागरिक के पत्र पर नगर विकास मंत्रारलय को पत्र भेजकर वाघोली हडपसर अलग मनपा, वाघोली के लिए अलग मनपा बनाने या वाघोली के लिए अलग से डेवलपमेंट प्लान तैयार कर उसके लिए फंड देने की मांग की है. नगर विकास मंत्रालय ने इस संबंध में मनपा की राय मांगे जाने की उल्टी सीधी चर्चाएं शुरू हो गई है.

मनपा में 34 गांवों को शामिल करते वक्त नागरिकों की आपत्तियां और सुझाव मंगाए गए थे.
इन आपत्तियों और सुझावों पर सुनवाई होने के बाद मनपा के शहरा सुधारणा, स्थायी समिति और जनरल बॉडी की मान्यता के बाद राज्य सरकार ने इन गांवों को मनपा में शामिल करने का अंतिम निर्णय लिया.
इन समितियों और जनरल बॉडी में सभी राजनीतिक दलों ने गांवों को शामिल करने का समर्थन किया था.
केवल तीन से पांच वर्ष में भौगोलिक दृष्टि से दो सौ से अधिक चौ. कि. मी. परिसर में सभी सुविधाएं उपलब्ध कराना मनपा ही नहीं बल्कि राज्य सरकार के लिए भी असंभव है.
यह सभी राजनीतिक दल के नेता जानते है.
उसके बावजूद केवल सुविधाओं के अभाव और प्रॉपर्टी टैक्स का हवाला देकर इन गांवों को फिर से
अलग करने की भूमिका केवल राजनीतिक मकसद से लिए जाता नजर आ रहा है.

 

मनपा और पीएमआरडीए ने शामिल गांवों के विकास का ड्राफ्ट तैयार किया है.
ये डेवलपमेंट प्लान अभी तक मंजूरी के इंतजार में है.
मनपा इन गांवों का कचरा प्रबंधन कर रही है. वाटर सप्लाई और ड्रेनेज लाइन के काम की शुरुआत की है.
गांवों के भौगोलिक स्थिति को देखते हुए इन कार्यों के लिए बड़ी मात्रा में फंड की आवश्यकता है.
इन योजनाओं को पूरा होने में तीन से पांच वर्ष का समय लगने की संभावना है.

लेकिन गांवों को अलग करने का निर्णय लेकर अलग मनपा या नया नगरपालिका बनाने का
निर्णय होने पर इन मूलभुत सुविधाओं को तैयार करने में कितना समय लगेगा इसका जवाब गांवों को
अलग करने की मांग करने वाले कोई राजनीतिक दल आगे आकर देते नजर नहीं आ रहे है.
ऐसे में गांवों को अलग करने का निर्णय हो अथवा अलग नगरपालिका या महानगरपालिका बनाने
की मांग यह केवल नये स्थानीय स्वराज संस्था में सत्ता पाने के लिए किया जा रहा है.
इस सत्ता संघर्ष में आम नागरिकों के सुविधाओं से दूर रहने का डर दिख रहा है.

 

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