चाणक्य नीति: इंसान के लिए मूर्खता-जवानी से भी ज्यादा कष्टदायी
नई दिल्ली : पोलिसनामा ऑनलाइन – चाणक्य का भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। ये अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र के ज्ञाता होने के साथ ही एक महान दार्शनिक भी थे। इन्होंने अपनी नीतियों के माध्यम से नंदवंश का नाश करके चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बना दिया। आज के दुनिया में हर किसी की अपनी-अपनी चाहत होती है। कोई रुपया-पैसा चाहता है, कोई सम्मान तो कोई मुक्ति की कामना रखता है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में कहा कि इंसान के लिए मूर्खता-जवानी से भी ज्यादा कष्टदायी होती है।
श्लोक –
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्ट च खलु यौवनम्।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगृहेनिवासनम्॥
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि मूर्खता इंसान के लिए अपने आप में एक बड़ा कष्ट है। मूर्ख व्यक्ति को सही और गलत का पता नहीं होता और इस वजह से वो अपने ही कर्मों के कारण परेशानी में पड़ता रहता है। उसे हमेशा कष्ट उठाना पड़ता है। कौन सी बात उचित है और कौन सी अनुचित इसका पता लगना खुशहाल जीवन के लिए आवश्यक होता है।
चाणक्य कहते हैं कि जवानी भी इंसान को दुखी करती है. इस उम्र में इंसान की इच्छाएं ज्यादा होती हैं और उनके पूरा नहीं होने पर दुख भी काफी होता है। इंसान के जीवन का यह वो दौर होता है जिसमें वो काम के लिए जोश में विवेक खो बैठता है। उसे अपनी शक्ति पर गुमान हो जाता है। इंसान इतना अहंकारी हो जाता है कि वो किसी दूसरे को कुछ नहीं समझता। साथ ही चाणक्य कहते हैं कि जवानी मनुष्य को विवेकहीन बना देती है और इस कारण उसे कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, चाणक्य मूर्खता और जवानी से भी ज्यादा कष्टदायी दूसरे के घर में रहने को बताते हैं।
चाणक्य के मुताबिक दूसरे के घर में रहते समय इंसान को उसकी कृपा पर आश्रित रहना होता है। इस अवस्था में मनुष्य अपनी स्वतंत्रता खो देता है। इसीलिए कहा गया है कि ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं’ |