सीएम की सुपारी लेने वाले गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला को पकड़ना तो दूर, तस्वीर के लिए तरसती रही थी पुलिस, फिर ऐसे हुआ ‘आतंक’ का अंत

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लखनऊ : समाचार ऑनलाइन – उत्तर प्रदेश का गोरखपुर जिला एक ऐसे गैंगस्टर के लिए भी जाना जाता है, जिसने 90 के दशक में पुलिस की नाक में दम कर रखा था, लेकिन लाख कोशिश के बावजूद उसे पकड़ना तो दूर प्रशासन उसकी एक फोटो तक हासिल नहीं कर पाया। उसका नाम है श्रीप्रकाश शुक्ला। यह भी कहा जाता है कि श्रीप्रकाश ने यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की 6 करोड़ रुपये में सुपारी ले ली थी। परेशानी यह थी कि श्रीप्रकाश शुक्ला की एक भी तस्वीर पुलिस के पास नहीं थी। दरअसल, उसने कह रखा था कि जिसने भी उसकी तस्वीर पुलिस के पास पहुंचाई, वह उसे 24 घंटे के अंदर मार डालेगा। हालांकि, अचानक पुलिस को उसकी लंबी खोजबीन का नतीजा मिला और शुक्ला की तस्वीर तैयार हो गई। श्रीप्रकाश की तस्वीर उसकी भांजी की बर्थडे पार्टी में मिल गई। इसमें सिर्फ उसका चेहरा ही नजर आ रहा था। यह बात 1997-98 की है।

और बन गया ‘भइयाजी’ : श्रीप्रकाश शुक्ला तकरीबन 20 वर्ष का था। एक रोज कॉलेज से लौटते वक्त बाजार में श्रीप्रकाश की बहन के साथ एक शख्स ने छेड़खानी कर दी। मास्टर पिता ने पुलिस के पास जाने की बात कही, तो श्रीप्रकाश ने कहा-न्याय मैं खुद करूंगा। इसके बाद शोहदे की हत्या हो गई। वह वीरेंद्र शाही का आदमी था। नेता हरिशंकर तिवारी ने भी मामले में दिलचस्पी दिखाई थी। इधर, श्रीप्रकाश शुक्ला को बैंकॉक भेज दिया गया। वापस लौटकर आया तो शुक्ला ‘भइयाजी’ बन गया। इस गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर करने वाले अधिकारी राजेश पांडेय ने श्रीप्रकाश शुक्ला के बारे में कुछ ऐसी बातें बताई हैं, जो अभी तक ‘दफन’ ही थीं।
उन्होंने बताया कि श्रीप्रकाश शुल्का के गैंगस्टर बनने की कहानी काफी लंबी और चेन से जुड़ी हुई है। 70 के दशक में जेपी आंदोलन के बाद गोरखपुर यूनिवर्सिटी में दो छात्रगुट तैयार हुए थे। उन दो छात्र गुटों में से ब्राह्मण वर्ग का नेतृत्व हरिशंकर तिवारी कर रहे थे और ठाकुर वर्ग के नेता वीरेंद्र शाही बन गए थे। बाकी शाही और तिवारी एक दूसरे के धुर-विरोधी माने-जाते थे। श्रीप्रकाश शुक्ला और हरिशंकर तिवारी के साथ खूब बनती थी। गोरखपुर स्थित मामखोर गांव के रहने वाले श्रीप्रकाश शुक्ला ने गोरखपुर में पहली बार वीरेंद्र शाही पर अटैक किया तो वह बच निकले, लेकिन खुन्नस बनी रही। घटना के वक्त श्री प्रकाश के साथ अनुज सिंह, सुधीर त्रिपाठी और सूरजभान भी मौजूद थे। सूरजभान को वह अपना गुरु मानता था।

‘गुरु सूरजभान ही बन गया था दुश्मन’ : श्रीप्रकाश शुक्ला अपनी कमाई का कोई इन्वेस्टमेंट नहीं करता था। उसने तकरीबन पूरी रकम सूरजभान के पास ही रखी हुई थी। यही नहीं,एनकाउंटर से कुछ महीने पहले ही उसने सूरजभान के साथ मिलकर नेपाल में एक होटेल भी खरीदा था। श्रीप्रकाश शुक्ला की मौत के बाद पूरा पैसा सूरजभान के हिस्से आने वाला था।’ एके- 47 से लैस हो चुका श्रीप्रकाश शुक्ला का गैंग अब बहुत ही खतरनाक हो चला था। इसलिए सूरजभान ही उसका दुश्मन बन गया।

एय्याश था शुक्ला : काफी अय्याश किस्म का शख्स था। उसका कानपुर की रहने वाली एक महिला से प्रेम प्रसंग चल रहा था, जो बाद में उस तक पहुंचने की कड़ी बन गया। इतना ही नहीं, वह उसे अपने साथ रखता था ताकि कहीं मकान लेने में दिक्कत न आए। पति-पत्नी सोचकर लोग मकान आसानी से दे देते थे। वह उसके साथ मारपीट भी करता था।’

‘एक सिम ने श्रीप्रकाश शुक्ला को फंसा दिया’ : लंबे वक्त से श्रीप्रकाश एक ही सिम का इस्तेमाल करता रहा। उधर, एसटीएफ ने फोन से जानकारी निकालकर एक मास्टर प्लान तैयार कर लिया था। यही नहीं, एसटीएफ को गाजियाबाद में रहने वाली शुक्ला की प्रेमिका के घर का पता भी चल गया था। सिरदर्द बन चुके शुक्ला को निपटाने के लिए बड़ी उम्मीदों के साथ एसटीएफ ने जाल बिछाया और चप्पे-चप्पे पर हथियारबंद टीम तैनात कर दी। शुक्ला अनुज सिंह, सुधीर त्रिपाठी और भरत नेपाली के साथ एक सिएलो कार से गाजियाबाद पहुंचा। इसके बाद चारों ओर से घिर चुके श्रीप्रकाश और उसके साथियों को एसटीएफ ने मौत के घाट उतार दिया। इसी के साथ ही एक लंबे खूनी खेल के आतंक का अंत हो गया।

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