7 पौधे तय करेंगे भारत के हींग की दुनिया में कितनी होगी धाक, उगाई जा रही 11 हजार फीट की ऊंचाई पर

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नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम – तेज गंध वाली हींग भारतीय व्यंजनों में खुशबू और स्वाद के लिए खासतौर पर इस्तेमाल की जाती है। दाल में तड़का लगाने से लेकर सब्जी में खुशबू के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। देश के हर हिस्से में अलग-अलग नामों से यह किचन में खास स्थान रखती है। शायद ही ऐसा कोई किचन होगा, जिसमें हींग (Asafoetida) का इस्तेमाल नहीं होता होगा, लेकिन विशेष बात यह है कि भारत में यह नहीं उगाई जाती। पूरे देश का किचन आयातित हींग पर निर्भर है, लेकिन इसे लेकर बड़ी खुशखबरी है।

पहली बार देश में ही हींग उगाई जाएगी। सीएसआईआर (CSIR) और इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (IHBT), पालमपुर ने इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इसे भारत में उगाने के लिए करीब 5 हेक्टेयर जमीन पर कोशिश चल रही है। चूंकि हींग सिर्फ लद्दाख और लाहौल स्पीति जैसी ठंडी जगहों पर पैदा होती है। यही कारण है कि भौगौलिक परिस्थितियों को देखते हुए लाहौल और स्पीति के एक गांव कवारिंग में हींग उगाने की पहल की जा रही है, जो हिमाचल प्रदेश का एक ठंडा और सूखा जिला है। समुद्रतल से करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर लाहौल के इस क्वारिंग गांव में देश का पहला हींग का पौधा रोपित किया गया।

अफगानिस्तान से लाए गए हींग के बीज का पालमपुर स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान की लैब में वैज्ञानिक तरीके से पौधा तैयार किया गया है। ट्रायल के तौर पर घाटी में फिलहाल केवल 7 किसानों को हींग के पौधे दिए गए हैं।  एसआईआर के डायरेक्टर जनरल (DG, CSIR) डॉ. शेखर मांडे कहते हैं कि हींग उगाने के लिए 2016 से ही रिसर्च की जा रही है। अब हम इस दिशा में काफी आगे बढ़ गए हैं। संस्थान ने पालमपुर स्थित रिसर्च सेंटर में हींग के पौधों की 6 वैरायटी तैयार की है। दुनिया की 40 फीसदी हींग की भारत में खपत : आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में उत्पादित नहीं होने के बावजूद पूरी दुनिया की करीब 40 फीसदी हींग की खपत यहां होती है। अफगानिस्तान, ईरान और उजबेकिस्तान से करीब 600 करोड़ रुपये की 1200 मीट्रिक टन हींग का आयात किया गया है। भारत अफगानिस्तान से 90, उज्वेकिस्तान से 8 और ईरान से 2 फीसदी हींग का हर साल आयात करता है।

5 साल में होगी तैयार : सालों के शोध के बाद आईएचबीटी ने लाहौल घाटी को हींग उत्पादन के लिए माकूल पाया है। इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, लद्दाख, किन्नौर, जनझेली का पहाड़ी क्षेत्र भी हींग के लिए उपयुक्त माना गया है। हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान होना जरूरी है। लाहौल घाटी में फिलहाल ट्रायल के तौर पर मड़ग्रा, बिलिंग, केलांग और क्वारिंग के 7 किसानों को हींग का बीज वितरित किया है। ट्रायल के दौरान करीब 5 बीघा भूमि में हींग की खेती होगी। हींग की फसल पांच साल में तैयार होती है। इसकी जड़ पूरी तरह तैयार होने के बाद पौधे में बीज तैयार होंगे। अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत 35 हजार रुपये प्रति किलो है।

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