मराठा आरक्षण में सकारात्मक फैसले की उम्मीद: अशोक चव्हाण

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102 वां संशोधन राज्यों को आरक्षण देने के अधिकार को बाधित नहीं करता है, भले ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में ऐसा कहा हो,  लेकिन इंद्र साहनी फैसले में 50 फीसदी की सीमा क्या है? यह सवाल  उन्होंने अनुत्तरित छोड़ दिया। तीन बार अपना पक्ष रखने का मौका मिला फिर भी केंद्र ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। ऐसा सार्वजनिक निर्माण मंत्री तथा मराठा आरक्षण संबंधी मंत्रिमंडल उपसमिति के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने कहा है।

मीडिया से बात करते हुए चव्हाण ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से  वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, शेखर नाफड़े और परमजीत सिंह पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी तर्क दिए। उनकी भूमिका भी लिखित में दर्ज की जाएगी। राज्य अब सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करता है। मराठा आरक्षण की सुनवाई के लिए राज्य सरकार ने पूरी तैयारी कर ली थी। हमारी कोशिश थी कि केंद्र और अन्य राज्य भी इस मामले में पक्ष रखे और उसमे हमे सफलता मिली।

केंद्र और संबंधित राज्यों ने कहा कि 102 वें संविधान संशोधन राज्यों को आरक्षण देने के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है। 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा के बारे में राज्य सरकार के अधिवक्ताओं ने बिना किसी संकोच के तर्क दिया। इंद्र साहनी ने फैसले पर पुनर्विचार करने के कारणों को प्रभावी ढंग से समझाया। उन्होंने कहा कि कई अन्य राज्यों ने भी सर्वोच्च अदालत से कहा है कि 50 प्रतिशत की सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत है।

 राज्य सरकार द्वारा नियुक्त वकील की समन्वय समिति के सदस्य आशीष गायकवाड़,  राजेश टेकाले, रमेश दुबे पाटिल,  अनिल गोलेगांवकर और अभिजीत पाटिल ने अथक परिश्रम किया। मराठा आरक्षण की सुनवाई के लिए मराठा समुदाय के कई नेताओं,  विशेषज्ञों,  विद्वानों और वकीलों ने अच्छे सुझाव दिए। मराठा आंदोलन के समन्वयक के साथ-साथ समुदाय के कई संगठनों ने भी सहयोग किया। उन्होंने यह भी कहा कि वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी,  शेखर नाफड़े,  परमजीत सिंह पटवालिया,  महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी,  विशेष वकील विजय सिंह थोराट,  वकील राहुल चिटनिस और उनके सहयोगियों ने दिन रात काम किया।

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